________________
"दूषण शका
नही छोडते । किंतु जिन धर्म-बन्धुओ का निर्ग्रन्थ-प्रवचन से सतत परिचय रहता है, जिन्होने निर्ग्रन्थ-प्रवचन के उद्देश्य और आदेश को समझ लिया है, वे इस प्रकार के भुलावे मे नही पाते । उनके पास निर्ग्रन्थ-प्रवचन को समझने की कसौटी है। वे असली और नकली का भेद सरलता से जान लेते हैं।
उनका दृढ विश्वास है कि निर्ग्रन्थ-प्रवचन का उद्देश्य निराबाध एव शाश्वत शाति रूप मोक्ष प्राप्त करना है । और उपाय है-संवर और निर्जरा । इन्हे अपना कर लक्ष्य को प्राप्त करना। प्रास्रव हेय और संवर उपादेय है। संयोग सम्बन्ध हेय और असगता-नि संगता उपादेय है । सासारिक प्रवृत्ति हेय और सयम तथा ज्ञानादि मे प्रवृत्ति उपादेय है । इस प्रकार निर्ग्रन्थ धर्म के उद्देश्य और उपाय को समझनेवाला किसी भी खतरे मे नही पडता । वह समझ लेता है कि असल क्या है और नकल क्या है ? किंतु जो भोले-भाले और केवल व्यक्ति विश्वास पर ही रहने वाले हैं, उनके लिये ऐसे लोग खतरनाक होते हैं। यह खतरा, सामान्य व्यक्ति से नही, किंतु विशेष व्यक्ति से होता है। जिनका प्रभाव हजारो पर पड़ता है, उन्ही मे से अभिनिवेश के स्वामी अधिक होते है । अतएव निर्ग्रन्थ प्रवचन के मर्म को जानकर, ऐसे खतरो से बचकर, सम्यक्त्व को सुरक्षित रखना चाहिये।
दूषण-१ शंका सम्यक्त्व को मलीन अथवा नष्ट करने वाले कारण ये
thics