________________
५४
सम्यक्त्व विमर्श
कोई राजमार्ग का अनुसरण करते हैं, तो कोई गजसुकुमाल अनगार की तरह उबडखाबड मार्ग को छलाग मारकर पार कर लेते है । इस प्रकार अनेक मार्ग होते हुए भी प्रयत्न अनुकूल हो-सम्यग् अनुष्ठान हो, तो सफलता हो सकती है । जिनकल्प, स्थ विरकल्प, कल्पातीत, ये भिन्न मार्ग होते हुए भी सम्यग् परिणति युक्त है। ऊबडखाबड़ मार्ग से चलनेवालो के लिए, खतरे के स्थान अधिक होते हैं। यदि सत्व की न्यूनता हो, तो पतन की अधिक संभावना रहती है।
सिद्धि का राजमार्ग सरल है। उसमे खतरे के स्थान उतने नही है । 'सलिंग' राजमार्ग है । गृहलिंग और अन्यलिंग राजमार्ग नही है। प्रचार और ममर्थन के लायक नही है। निग्रंथ प्रवचन ने सिद्धातत स्वीकार किया है कि सलिंग मे, एक समय मे १०८ तक सिद्ध हो सकते हैं, किंतु गृहस्थलिंग में अधिक से अधिक चार ही। इसमे सिद्ध होता है कि गृहलिंग राजमार्ग नही है। गृहलिंग मे लाखो मे से एकाध सफल होते है। उनकी परिस्थिति भिन्न प्रकार की होती है । यदि वे स्वयं गृहस्थलिंग को उपादेय मानकर पकडे रहे, तो कदापि सिद्ध नही हो सकते । ऊपरी लिंग गृहस्थ या अन्यतीर्थी का होते हुए भी भीतरी-भावलिंग तो उनका भी स्वलिंग ही होता है। भावों से भी यदि वे द्रव्यलिंग की तरह ही हो, तो कभी भी सिद्ध नही हो सकते । 'सलिंग' अर्थात्-अपना लिंग, संयम का लिंग, मोक्षाथियो का लिंग । 'अन्यलिंग' अर्थात् दूसरो का, संसार का, असंयम का लिंग।