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मार्ग एक या अनक ?
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इस प्रकार सम्यग् विचार करने से समाधान हो सकता है। मोक्ष के साधन सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है । इनसे निष्पन्न मार्ग ही मोक्ष मार्ग है ।
कल्पना करो कि 'भारत' के मध्य भाग मे 'सिद्धपुर' नामका एक श्रीसम्पन्न रमणीय नगर है । सिद्धपुर के पश्चिमी भाग मे रहा हुआ कोई व्यक्ति, सिद्धपुर के लिए-उसी दिशा मे-पूर्व की ओर चले, तो सिद्धपुर पहुँच सकता है। इसी प्रकार अन्य तीन दिशाओ मे रहे हुए तीन व्यक्ति, सिद्धपुर की दिशा मे पश्चिम, उत्तर और दक्षिण मे चले, तो सिद्धपुर पहुँच सकते है। चारो के क्षेत्र भिन्न भिन्न होते हुए और भिन्न दिशा मे रहते हुए भी वे सब एक सिद्धपुर की ही दिशा मे चल रहे है। पश्चिमवाला पूर्व की ओर चलता है, उसके लिए सिद्धपुर की दिशा पूर्व है और पूर्ववाले के पश्चिम मे है। चारो ही एक सिद्धपुर की दिशा में ही चल रहे है, इसीसे वे सफल मनोरथ हो सकते हैं । यदि, पूर्ववाला पूर्व मे, और दक्षिण वाला दक्षिण में चले, तो उनके मार्ग एक नही है-सिद्धपुर की ओर नही है । इसलिये ऐसे भिन्न मार्गवाले असफल रहते है, और ध्येय से दूर-अति दूर चले जाते है । उनका श्रम दुखदायक होता है । . . कोई सामायिक चारित्र से सीधे सूक्ष्मसपराय को स्पर्शकर यथाख्यात चारित्री हो जाते है, और कोई सामायिक के बाद छेदोपस्थापनीय और परिहार विशुद्ध चारित्र पालने के बाद आगे बढ़ते हैं। कोई लम्बे समय तक चारित्र पालते है, तो कोई थोडे ही समय मे उग्र प्रयत्न द्वारा ध्येय साध लेते है।