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सम्यक्त्व विमर्श
१० प्राचार विचार-सम्यग् विचार और प्राचार (केवली प्रणीत धर्म के अनुसार) पालनेवाले ही सिद्ध हो सकते हैं ।
असम्यग् (मिथ्या श्रद्धान् आदि) से मुक्ति प्राप्त नही कर सकते । समयाभाव से, द्रव्य-लिंग से गृहस्थ और अन्यतीर्थी रहते हुए भी सिद्ध हो सकते है, किंतु भाव-लिंग (श्रद्धा और स्पर्शना) तो स्वलिंग-सम्यक् ही होनी चाहिए। इसके बिना सिद्धि हो ही नही सकती । वचन द्वारा प्ररूपणा का अवसर हो, तो वह भी सम्यग ही होनी चाहिए। मिथ्या प्ररूपणा के चलते मुक्ति नही हो सकती।
११ साधक-सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ही मुक्ति के सच्चे साधन है। संवर-सह निर्जरा से मोक्ष की साधना होती है । इसीसे मुक्ति प्राप्त होती है । जिनाज्ञा के अनुकूल परिणति ही साधक कारण है।
१२ बाधक-मिथ्यात्व, अव्रत,प्रमाद. कषाय और अशभ योग, मुक्ति के लिए बाधक है । जबतक आस्रव है, तवतक बधन बढ़ते ही रहते है और जब तक बन्धन है, तबतक मुक्ति नही हो सकती। जो लोग आरम्भ परिग्रह को मुक्ति के लिए अनुकूल साधन मानते हैं, जिनकी दृष्टि आत्मशुद्धि की ओर नही होकर लोक-रुचि अथवा संसार-रुचि की ओर लगी हुई है, वे बाधक कारण को पकडे हुए हैं । जबतक यह कारण मौजूद रहेगा, तवतक मुक्ति नही होने की।
हमने यहा संक्षेप मे उपरोक्त बारह द्वारो पर विचार किया है। इनके सिवाय और भी अनेक द्वार बन सकते है।