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मार्ग एक या अनेक ?
कोई विष खाकर भी आरोग्य लाभ करले, तो विषपान प्रारोग्यप्रद नही माना जाता। कहते है कि 'किसी असाध्य रोगी ने रोग से तंग आकर, मरने के उद्देश से विषपान कर लिया। किंतु वह विषपान उसके रोग की उपशाति का कारण बनगया। "मरता आकडा पीवे"-इस देशी कहावत के अनुसार यदि कोई गृहस्थ या अलिंग मे रहते हुए भी (असोच्चा केवली की तरह ) भावो के सुलटने से सम्यग् परिणतिवाला हो जाय और श्रेणी प्राप्त कर अन्तकृत केवली होजाय, तो उसकी पूर्व परिणति की सराहना नही की जा सकती। विषपान, आरोग्यता का सम्यग् साधन नही माना जाता । इसी प्रकार अन्यलिंगादि साधन भी मोक्ष का सही साधन नही माना जाता। जो लोग, कुश्रद्धा के चलते अन्य तीथिक अथवा गृहस्थ दशा को मोक्ष मार्ग मानने के लिए 'अनेक मार्ग' की युक्ति पेश करते हैं, वे गलत प्रचार करते हैं ।
उपरोक्त विषय पर हम दूसरी दृष्टि से भी विचार करते है।
कई विशिष्ट स्थान ऐसे भी होते है कि जहां पहुंचने का एक ही मार्ग होता है । जिस गाँव के तीन ओर पहाड हो, या नदी आदि से घिरा हुआ हो, अथवा सुरक्षा की दृष्टि से किला बनाकर जाने आने का-चित्तोड़गढ़ की तरह केवल एक ही मार्ग रखा हो, या ऐसे दुर्गम पहाड़ पर बसा हो कि जहां पहुँचने का एक ही रास्ता हो, तो उस ग्राम या नगर मे एक ही रास्ते से पहुंचना होगा । बृहद्कल्प सूत्र प्रथम उद्देशक के दसवे