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सम्यक्त्व विमर्श
बनाकर सुखी कर सकेगी। दुनिया मे दिखाई देनेवाले अन्य उपास्य, राग द्वेष और कनक-कामिनी के पाश में बंधे हुए हैं । कई अज्ञान के अन्धकार मे भटक रहे हैं । वीतरागता के दर्शन सिवाय जिनेश्वरो के अन्य कही नही हो सकेगे। जिनेश्वर से भिन्न ऐसा एक भी देव नही-जो जिनेश्वरो की वीतरागता की बराबरी कर सके । सर्वज्ञता के प्रमाण आज भी जिनेश्वरो के प्ररूपित आगमो मे मिल सकते है । जिस बात को ससार का कोई भी व्यक्ति, देव अथवा विशिष्ठ पुरुष नहीं बता सका, उन बातो को बतानेवाले जिनेश्वरदेव ही थे। जैसे कि -
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, परमाण, पुद्गल के वर्णादि, भाषा का शीघ्र ही लोकव्यापी हो जाना, परमाणु पुद्गल का एक समय मे ही प्रसंख्यात योजन लाधकर एक लोकान्त से दूसरे लोकान्त मे पहुँच जाना, पृथ्वी, अप, तेजसादि स्थावरो मे जीव होना, जीवो के भिन्न २ भेद और कर्मों के भेदानभेद, ये सब विशेषताएँ जैनधर्म की ही है। निष्पाप और निर्दोष जीवन बिताकर आत्म कल्याण साधने की विधि, जैसी निर्ग्रन्थ प्रवचन मे है, वैसी अन्यत्र कहाँ है ? इन बातो पर विचार करनेवाला यदि कुतर्क जाल से वचित रहे, तो इसके मल उपदेशक को सर्वज्ञ मानेगा ही।
हमारे देव वीतराग सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं । वे सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं, इसीसे तो उन्होने ऐसे तत्त्वो और रहस्यो को प्रकट किया कि जो साधारण मनुष्यो से सदा अदृश्य रहे और जिसे जगत् का कोई भी 'देव' संज्ञक व्यक्ति नही बता सका । उनका