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सम्यग्दर्शन का महत्व धर्म के ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप, ये चार भेद हैं। मोक्ष-मार्ग चारो ही भेदो से युक्त है। इन चारो की उत्कृष्टता ही से मोक्ष प्राप्त होती है । लेकिन इन चारो मे भी सम्यग्दर्शन का महत्व अत्यधिक है । ज्ञान, चारित्र और तप से भी इसका मूल्य बहुत अधिक है। बिना सम्यग्दर्शन के यदि नौ पूर्व से अधिक ज्ञान पढ लिया, उच्च चारित्र का पालन भी कर लिया और उग्र तपस्या से देह को कृश बना डाला, तो फल क्या हुआ ? प्रकाम-निर्जरा और शुभ-बन्ध ही न ? जो चारित्र और तप, सम्यगदर्शन के साथ होने पर मोक्ष दिलाने वाला होता है, वही इसके अभाव मे स्वर्गीय सुख देकर फिर दुख-परपरा मे गिराने वाला हो जाता है । तब मूल्य किसका अधिक हुआ ? सम्यगदर्शन का ही।
सम्यग्दर्शन मे वह शक्ति है कि इसकी उपस्थिति मे दुर्गति का बन्ध तो हो ही नही सकता, यदि यह साथ नही छोडे, तो चारित्र की प्राप्ति करा ही देता है-इस भव मे नही हो, तो पर भव मे।
जीव, पहले तो अकाम-निर्जरा के द्वारा ६६ क्रोडाकोड सागरोपम की मोहनीय की स्थिति को तोडता है, उसके बाद सम्यक्त्व प्राप्त करता है । सम्यक्त्व प्राप्ति के समय भी उसके एक कोडाकोड सागरोपम लगभग स्थिति के कर्म होते हैं। यदि जीव, सम्यक्त्व को पाकर उसे दृढतापूर्वक पकड रक्खे, तो वह अधिक से अधिक ६६ सागरोपम जितने काल मे ही समस्त कर्मों को नष्ट करके मक्ति प्राप्त कर सकता है और यह ६६