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अज्ञान मिथ्यात्व
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इनके काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा, इन छः से गुणन करने पर कुल ८४ भेद हुए । जैसे-'जीव स्वत. काल से नही है, परत. काल से नही है । इसी प्रकार यदृच्छा प्रादि छह भेद से स्वत परत गिनने पर १२ भेद हुए । इन बारह का सात तत्त्वो से गुणन करने पर ८४ भेद हुए।
सम्यग्दष्टि जीवो को इस मिथ्यात्व से बचना चाहिए।
२३ अज्ञान मिथ्यात्व संसार मे कोई 'ज्ञानवादी है, वे ज्ञान को ही एकात पकडकर क्रिया का निषेध करते हैं, तो कोई अज्ञानवादी भी हैं । इनका सिद्धात है कि 'जीवादि पदार्थों को जानने की प्रावश्यकता ही क्या है ?' अतीन्द्रिय पदार्थो मे सत्य क्या और असत्य क्या है ? परोक्ष वस्तु को जानने वाला संसार में कोई भी नहीं है। यदि ये वस्तुएँ हैं भी, तो जो जानते हैं उन्ही को अधिक दोष लगता है, जो जानता ही नही है, तो उसको अनजानपने के कारण कम दोष लगता है। इसलिए जीवादि तत्त्वों को जानना व्यर्थ है।' इस प्रकार अज्ञानवादी का मत है।
कई जैनी कहे जाने वाले, ज्ञानाध्ययन को स्वीकार करते हुए भी अतीन्द्रिय ज्ञान के विषय मे अश्रद्धालु बन गये है। उन्हे अवधि, मन.पर्यव और केवलज्ञान के विषय मे श्रद्धा ही नही है । केवलज्ञान के विरुद्ध तो जाहिर मे विचार भी व्यक्त हुए हैं। किसी तार्किक विद्वान का कहना है कि-'केवलज्ञानी अनन्त वस्तुओ को जानते है, किंतु उनके ज्ञान के बाहर