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सम्यक्त्व विमर्श
होगे और जो अधिक भोगी है, वे अधिक ऊँची गति को प्राप्त होते होगे। इनकी दृष्टि मे आत्मा कोई वस्तु ही नही है । यदि ये आत्मवादी होते और उन्हें प्रात्मा के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान होता, तो भौतिक एवं नाशवान सुखो पर ही अपने सिद्धात को केन्द्रित नहीं करते। इस प्रकार सौख्यवादी भी प्रक्रिया मिथ्यात्व के स्वामी है । चार्वाक मत का समावेश इसमे होता है।
नियतिवादी भी क्रिया के उत्थापक है । उसका पूरा आधार नियति-भावीभाव (अथवा होनहार) पर है । उनका सिद्धात है कि-" ससार मे जो कुछ भी होता है, वह सब नियति से ही होता है, क्रिया-पुरुषार्थ से कुछ भी नही हो सकता।" स्वयं रोटी खा कर भूख की निवृत्ति और पानी पी कर प्यास की निवृत्ति करते हैं और सभी तरह की सासारिक क्रिया करते हुए और उसका फल पाते हुए भी वे क्रिया से इन्कार करते हैं। ये भी प्रक्रियावादी हैं। इसी प्रकार कालवादी, स्वभाववादी भी अपने अपने वाद को पकडकर-एकातवाद का आश्रय लेकर, क्रिया का निषेध करते हैं।
जैन कुल मे जन्मे हुए किंतु धार्मिक श्रद्धा से शून्य ऐसे कई लोग, धार्मिक अनुष्ठान करने वालो को "क्रिया-जड" कहकर उपहास करते हैं । यह भी उनका मिथ्यात्व है।
'प्रक्रिया मिथ्यात्व' मे प्रक्रियावादियो के ८४ भेदों का समावेश होता है । ये ८४ भेद इस प्रकार हैं।
__ जीव, अजीव, आश्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष, इन सात तत्त्वो के 'स्व' और 'पर' के भेद से १४ भेद हुए।