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बालक ने हजारों को छला
लौकिक-मिथ्यात्व के जोर से लोग, कैसे उल्लू बनते हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण एक हाल ही की बिलकुल ताजी घटना से मिलता है । 'नव भारत टाइम्स' बंबई के ता० १-७-५८ के अक मे "बालक ने हजारो को बेवकूफ बनाया"-शीर्षक से एक संवाद छपा है । उसका भाव यह है,
बीजापुर मे कुष्ट-रोग से पीडित 'बालकृष्ण कुलकर्णी' नामक एक १६ वर्षीय बालक ने लगभग ६० हजार स्त्री पुरुषो को मूर्ख बनाया। 'रुक्मागद' की समाधि पर ता० १५-६-५८ को बालक ने यह दिखाने का प्रयत्न किया कि उसके शरीर मे किसी दैवी-शक्ति का संचार हुआ है।' वह कूदता फांदता हुआ यह बता रहा था कि 'उसके हाथ मे जो क्रुद्ध सर्प है, वह रुक्मागद स्वामी का ही अवतार है।'
इस चमत्कार की कहानी बहुत फैली और दस दिन के भीतर हजारो रुपयो का चढावा आगया। आखिर ता० २५६-५८ को भडा फोड हो गया। बात यह हुई कि वह साँप, एक सपेरे से छ रुपये मे लिया था। सपेरे को उसके ६) नही मिले, जिससे उसने हजारो लोगो के बीच इस पाखड को खुला कर दिया । उस समय अन्ध-विश्वासियो की आँखे खुली और कूलकर्णी को गालियां देते हुए चले गये। पुलिस ने कुलकर्णी को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस का अनुमान है कि यह बालक किसी पक्के गुरु का चेला है।"
हमारा अनुमान है कि उल्लु बनने वाले, उन साठ हजार मे, सो पचास जैनी भी होगे, जो आँखे मूंद कर, हर किसी