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आभिनिवेशिक मिथ्यात्व
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माना जायगा । आज भी कोई आगमानुसार प्ररूपणा करे और संयम का रुचिपूर्वक पालन करे, तो द्रव्य-क्षेत्रादि की बाधा उत्पन्न नहीं होती। परिहार-विशुद्ध, सूक्ष्म-सपराय तथा यथाख्यात चारित्र और भिक्षु-प्रतिमा के लिए द्रव्य-क्षेत्रादि की बाधा चल सकती है, सामान्य साधुता के लिए नही और श्रद्धा मे तो कछ भी बाधा नही पाती। किंतु विकारी-दष्टि वाले लोग, द्रव्य-क्षेत्रादि की खोटी ओट लेकर मिथ्या प्रचार करते रहते हैं।
___ कई लोग "काले कालं समायरे" इस एक चरण को लेकर भ्रम फैलाते हैं, किंतु इसके पहले के तीन चरण छोड देते हैं, जिसमे लिखा है कि
"कालण णिक्खमे भिक्ख , कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता, काले कालं समायरे"
(उत्तरा १-३१) इसमे लिखा है कि भिक्षाकाल के समय ही गोचरी के लिए निकले और पुन यथाकाल ही वापिस लौट आवे तथा अकाल को छोडकर नियत समय पर ही उस काल की क्रिया करे, अर्थात् प्रतिलेखना, स्वाध्याय, ध्यान, गोचरी, प्रतिक्रमणादि सभी क्रिया यथाकाल ही करे। इस विधान का उल्टा अर्थ लगाकर, काल ( जमाना ) अर्थात् जमाने के अनुसार चले । बस उल्टी मति को जैसा-तैसा शास्त्र प्रमाण मिलगया। यह हालत है-मिथ्याभिनिवेश की।
अभिनिवेश-मिथ्यात्व की उत्पत्ति प्राय. सम्यग्दष्टियों