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सम्यक्त्व विमर्श
चाहिए, उसे जीवित मनुष्य की चमडी मे से बरबस निकाले हुए खून की नीचातिनीच उपमा देकर और उसके द्वारा जैन मुनियो के प्रति अपनी भयंकर घृणा व्यक्त करते हुए भी जो सच्चे बनने के लिए प्रयत्न करते रहते हैं, उन पर अभिनिवेश का पूरा प्रभाव है । और इस खोटे पक्ष को अनेको ने तथा प्रसिद्ध सस्था ने अपने गले मढ लिया है । इस प्रकार अभिनिवेश मिथ्यात्व के प्रभाव मे अनेक व्यक्ति प्रागए हैं।
. कई लोग "हम वाद-विवाद पसंद नहीं करते । पालोचनाओ मे क्या धरा है, हम तो इनकी उपेक्षा ही करते है," इत्यादि शब्दो से उपेक्षा करके शान्ति के उपासक-सा डोलकर चुपचाप रहते हैं। यह ठीक है कि इससे वाद-विवाद नही बढता, परन्तु इस चुप्पी की ओट मे असत्य को छुपाया जाता है और सत्य की बलि देकर शान्ति के उपासक का दभ होता है। हादिक सरलता और सत्यप्रियता तो तव मानी जाय कि अपने प्रमत्य को-अपनी भूल को उसी प्रकार जाहिर मे स्वीकार कर मिथ्यामल को दूर किया जाय, जिस प्रकार असत्य का प्रचार किया था।
बहुत से लोग द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की ओट लेकर मनमानी खोटी मान्यता चलाते हैं। कई प्रतिसेवना-कूगोल और बकुस निग्रंथ के चारित्र की ओट मे, महाव्रत भंग जैसे बडे दोपो का-अनाचारो का बचाव करते हैं । ये सब मिथ्या बाते हैं । द्रव्य क्षेत्र और काल,यह नहीं कहता कि तुम औदयिक भाव मे धर्म मानो । किसी भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव मे बन्ध को धर्म नही माना जाता, संवर-निर्जरा को ही धर्म के साधन