________________
१६४
सम्यक्त्व विमर्श
क्रिया नही करने वालो के भी विवाहादि कार्य सुखपूर्वक सम्पन्न होते है, बिमारियो को देवस्वरूप नही मानने वाले लोगो को भी ये रोग होते हैं और उनका निवारण हो जाता है, तथा लक्ष्मी पूजादि नहीं करने वालो के यहा भी भरपूर सम्पत्ति होती है । हिन्द वाहर. के अमेरिका आदि देश, बिना लक्ष्मी पूजन के भी समृद्ध एव शक्तिशाली बने हुए है । फिर हम क्यों इन व्यर्थ के क्रिया-काण्डो मे उलझकर अपनी मूढता एव अज्ञानता का प्रदर्शन करे ?
मरणोत्तर क्रिया मे मतक को धूप आदि देना, आदि कई अज्ञानपूर्ण क्रियाएँ प्रचलित हैं, जिनसे न तो कुछ भौतिक लाभ है और न आत्मिक लाभ ही है। उल्टा मिथ्यात्व का पोषण होकर आत्मा को कर्म-बन्धनो में जकडना है। इस प्रकार को क्रियाओं के विपरीत यदि कुछ कहा जाय, तो इसके बचाव मे परम्परा की ओट तथा अन्धविश्वास की बाते ही सामने प्राती है।
जैनी कहे जाने वालो मे ऐसी अन्धपरम्परा (जो केवल मिथ्यात्व पर ही खडी है) चलते रहना, सचमुच आश्चर्य की बात है । कुछ लोगो मे तो इतना आग्रह होता है कि वे इन विषयो मे, त्यागी संतो के उपदेश को भी नही मानते हुए यही कहते हैं कि “महाराज | ये क्रियाएँ हमारे बापदादा और पूर्वज, परम्परा से करते आये हैं, इसलिए हम भी करते हैं । वे मूर्ख नही थे, हमसे अधिक समझदार थे," आदि ।
इसी प्रकार कई लोग ऐसे भी होते है कि कारणवश