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__ आभिग्रहिक मिथ्यात्व
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क्या मुक्त-परमात्मा उनकी स्वार्थपूर्ति करेगे ? वास्तव मे असम्यग दृष्टियो की सगति का प्रभाव हमारी विचारधारा पर भी पड़ा है । हमे ऐसे विचारो को त्याग कर, इस मिथ्यात्व से बचना चाहिय।
११ श्राभिग्रहिक मिथ्यात्व तत्त्व की परीक्षा किये बिना ही, अपने पकडे हुए रूढ पक्ष से दृढतापूर्वक चिपके रहना और सत्य का विरोध करना'पाभिग्रहिक-मिथ्यात्व' है । अज्ञान के साथ आग्रह का योग हो, तव यह मिथ्यात्व होता है । अनसमझ और अज्ञानी अजैन लोगो मे ही यह मिथ्यात्व होता है-ऐसी बात नहीं है । कुछ जैन लोगो मे भी रुढिवश इस प्रकार का मिथ्यात्व चलता रहता है । जैसे कि कुल परम्परानुसार कई जैन कहाने वाले लोग, होलिका का पूजन करके दहन करते हैं । चेचक, मोतीझरा आदि रोगो को देव-स्वरूप मानते है । श्राद्धपक्ष मे पितरो का श्राद्ध करते हैं, यौवनवय प्राप्त होने के पूर्व ही बालवय मे कन्या का विवाह करते हैं और कन्यादान को धर्म मानते हैं । मालव आदि देशो मे विवाह का प्रारम, कुभकार के चाक (चक्र) पूजन से करते है और उकरडी पूजनादि हास्यास्पद रिवाजो को भक्तिपूर्वक अदा करते हैं । यह सब अजैन परम्परा का प्रभाव है।'
विवाह के अवसर पर गणपति स्थापना करना और सारी क्रियाएँ उनके सामने करना तथा भेरू भवानी आदि का पूजन करना, ये सव क्रियाएँ अन्धपरम्परानसार है । इसी प्रकार लक्ष्मी पूजनादि भी । हम यह नही सोचते कि इस प्रकार की मिथ्या