________________
७ असाधु को साधु मानना जिसमे साधुता के गुण नही हो, वे सभी असाधु-कुसाधु हैं । कुसाधु को साधु समझने से, वे ही परिणाम निकलते हैं, जो ठग को साहुकार समझने से निकलते है । कुसाधु स्वयं डूबते हैं और दूसरो को भी डुबोते हैं।
साधुता का वेश धारण करके लोगो को ठगने वाले, दुराचारी, कामी, क्रोधी और लालची तो असाधु है ही, किंतु ससार मे वे भी असाधु ही हैं जो अपनी अज्ञानता के कारण असाधुता का कार्य करते हुए भी साधु कहलाते है । उनमे से कई अभक्षपदार्थों का भक्षण करते हैं, भाग, तमाखू और गाजादि मादक द्रव्यो का सेवन करते है, चलने मे जिनकी निर्दोष प्रवृत्ति नही, वाणी जिनकी असत्य और कटुभापण तथा उन्मार्ग-देशना से दूषित है, जिनके खानपान के निर्दोप नियम नही है, और जिनकी साधना अज्ञान मूलक है, वे सभी असाधु हैं ।
कितने ही तो नाम-मात्र के साधु हैं, जो अपने को साधु बताते हुए भी गृहस्थ के समान हैं। वे वेश-मात्र से साधु हैं, किंतु आचरण से गृहस्थ की श्रेणी में ही आते हैं। उनके चालचलन अच्छे नही है। उनकी साधना,अप्रशस्त और ससार परं. परा को बढाने वाली है । कई देवमन्दिरो के आश्रय से अपना जीवन निर्वाह करनेवाले हैं। कई मानपूजा के चक्कर में पड़े है, तो कई दूसरो के मुहताज बने हुए हैं । कुसाधुओ के कारण धर्म बदनाम हुआ है और लोगो की दृष्टि मे वृणित नजर आने लगा है। लोग कहते हैं कि भारत में लाखो साधु हमारे लिए भारभूत हो रहे है', ऐसे असाधुओ से बचने के लिए 'भारत