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सम्यक्त्व विमर्श
वाला हो या पूर्ण पाच इन्द्रियवाला। अजीव के इन्द्रियाँ नही होती। हा, जीव के छोड़ देने पर उस शरीर मे इन्द्रियो का आकार कायम रहता है । इन्द्रियो की प्राप्ति भी सकर्मक जीव को ही होती है, ३ कषाय परिणाम-क्रोध, मान, माया और लोभ, जीव मे ही होते हैं, अजीव मे नही, ४ लेश्या परिणाम-कषायो को बढानेवाली कष्णादि ६ लेश्याएँ भी जीव के ही होती है, ५ योग परिणाम-मन, वाणी और शरीर का योग, जीव के ही होता है, अजीव के नही होता, ६ उपयोग परिणाम-विचार करना, अनुभव करना, मनन करना, ७ ज्ञान परिणाम-जानना, ८ दर्शन परिणाम-विश्वास करना, ६ चारित्र परिणाम-प्राचार प्रवृत्ति और १० वेद परिणाम-स्त्री, पुरुष और नपुसक सम्बन्धी भोग कामना । ये सब बाते जीव मे होती है, अजोव मे नही होती। इसलिये जीव का अस्तित्व मानना ही चाहिये। उपरोक्त परिणाम अवस्थानुसार व्यक्त अथवा अव्यक्तरूप से सभी ससारी जीवो मे होते है । जब कोई मनुष्य अथवा पशु पक्षी, चलना, फिरना, खाना, पीना और श्वासोच्छवास लेना बन्द कर देता है, तो हम मानते है कि यह मर गया है। यह मरना ही बताता है कि जब तक इसमे जीव का निवास था, तब तक वह उपरोक्त क्रियाएं करता था। अब इसमे जीव नही है । वनस्पति भी मरने के बाद सूख जाती है। पृथ्वी आदि मे भी परिवर्तन हो जाता है। इस प्रकार जीव के अस्तित्व मे विश्वास करने के अनेक हेतु हैं। इन पर ध्यान देकर हमे सम्यग् श्रद्धा सम्पन्न बनना चाहिये, जिससे हम मिथ्यात्व के प्रभाव से बच सके ।