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सम्यक्त्व विमर्श
सकता, उच्च कल्पोत्पन्न देव भी नही हो सकता, तब ऐसा कुटि. लतापूर्ण वाक्-बाण क्यो छोडा गया ? यदि कुश्रद्धालु लोग, यह भी कुतर्क उपस्थित कर दें कि "तब तो निगोद का जीव, विष्ठा का कीडा या नारक भी....... तो ऐसे कुकियो का मुंह कौन पकड सकता है ?
जैनदर्शन मे आश्चर्यभत उन्ही विषयो को माना है जो सर्वथा अनहोने तो नही हो, किंतु सामान्य नियम से कभी कुछ विपरीतता लिए हुए हो । जैसे कि
१ उपसर्ग, मनुष्यो को होते है, श्रमणो,विशिष्ठ श्रमणो और छद्मस्थ तीर्थङ्करो को भी उपसर्ग होते है-हुए है । उपसर्ग होते होते केवलज्ञान होकर मोक्ष गमन हुआ है । इसलिए उपसर्ग होना कोई आश्चर्य की बात नही है। किंतु तीर्थकर हो जाने के बाद उन्हे उपसर्ग होना ही आश्चर्य की बात है । इस आश्चर्य और अनाश्चर्य मे अन्तर विशिष्ट स्थिति का है और कुछ नही।
२ गर्भहरण सामान्य बात है । यह आश्चर्य की बात नही, किंतु तीर्थकर जैसी महान् आत्मा का गर्भ हरण हो, यही आश्चर्य की बात है।
६ परिषद् प्रतिबोध नही पावे, तो यह साधारण-सी बात है, किंतु जगद्गुरु परमवीतराग तीर्थकर भगवान् के प्रतिबोध से, प्रथम समवसरण स्थित एक भी जीव सर्वत्यागी नही बने, यही आश्चर्य की बात है।
इस प्रकार अन्य आश्चर्य भी ऐसे है कि जो सम्यक