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सम्यक्त्व विमर्श -
कारण निन्हव मान लिये गये। अब उसी समाज के साधु, निन्हवो से भी अनेक गुण अधिक कुश्रद्धालु बन गये । यह खेद का विषय है।
एक जैन नामधारी पंडित जी,अपने जैसे ही दूसरे पंडित से कहते है कि "प्रजनो के भगवान् तो रत्न-जड़ित ऊँचे सिंहासन पर बिराजते हैं, किंतु जैनियो के भगवान् (सिद्ध) लोकाग्र पर चमगादड (अथवा फांसी पर लटकते हुए व्यक्ति) की तरह अधर झूलते रहते है" । ऐसे पंडित कितने खतरनाक है ? अजन कहलानेवाले पडितो के बनिस्बत ये जैन पडित अधिक खतरनाक होते है। ऐसे ही पंडितो से पढे हुए, विद्वान् कहानेवाले प्रखरवक्ता मुनिजी ने स्त्रियो को पुरुषो के समान बताते हुए उनमे तीर्थंकर बनने की योग्यता बताई थी । जब उनसे कहा गया कि 'स्त्री के तीर्थंकर होने की घटना आश्चर्यजनक है और ऐसा आश्चर्य अनन्तकाल मे कभी होता है, तब वे तपाक से बोले"यदि स्त्री का तीर्थकर होना आश्चर्यरूप मानते हो, तो आश्चर्यरूप मे तो कभी 'गधा' भी तीर्थंकर हो जायगा' ? इस प्रकार की वज्रभाषा कई व्यक्तियो के बीच बोलकर मुनिजी ने (श्रद्धालुओ की दृष्टि से ) अपने घोर मिथ्यात्व का परिचय दिया। उनमे यह मिथ्या परिणति 'पाखड परिचय' के निमित्त से आई और उनका परिचय भी पाखंड-वर्धक साबित हुआ। उनके ऐसे विचारो का जिन लोगो मे प्रचार हुआ, उनमे जिनका धार्मिक ज्ञान साधारण या नही जैसा था और जो उन पर श्रद्धा रखते थे, वे तो कुश्रद्धालु बने ही होगे । इसमे कोई सन्देह नही. है।