________________
दर्शनभ्रष्टों की मानकता
६७
यह मिथ्यात्व का परिचय करने का परिणाम है।
दर्शनभ्रष्टों की भयानकता ऐसे 'स्व' कहलाने वाले पाषडी सबसे अधिक खतरनाक और संस्कृति की जड़े काटनेवाले होते हैं। उनके परिचय का त्याग. मूल प्रतिज्ञा मे ही किया गया है । सम्यक्त्व की प्रतिज्ञा मे दो बाते उपादेय है और दो हेय है ।
१ परमार्थ का परिचय करना, कीर्तन करना, आदर
करना आदि। २ सम्यग्दृष्टि और परमार्थ की आराधना करने वाले
मुनिराज आदि की सेवा करना। ये दो पद उपादेय हैं। इनके सिवाय१ व्यापन्न वर्जन-जिन्होने सम्यक्त्व का वमन कर दिया-त्याग दिया और सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हो चुके,
उनकी सगति का त्याग करना। २ कुदर्शन वर्जन-मिथ्यामतियो की संगति का त्याग
करना।
ये दो पद हेय-त्यागने योग्य हैं । त्यागने योग्य प्रतिज्ञा मे कुदर्शन त्याग के पूर्व 'व्यापन्न वर्जन को स्थान दिया। इस पर से यह समझना चाहिए कि कुदर्शनी-जन्मजात मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा, श्रद्धा-पतित व्यक्ति अधिक घातक होते हैं । वे जैनी, साध, या श्रावक कहलाते हैं । वे 'स्व-अपने माने जाते हैं। उनके द्वारा संस्कृति का जितना अहित होता है, उतना कुदर्शनी से