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श्लोकः
. बुझियोध्यानि शास्त्राणि न बुद्धिः शास्त्रबोधिका । प्रत्यक्षेऽपि कृते दीपे चक्षुहीनो न पश्यति ॥
इसका अर्थ सुगम ही है. असली तात्पर्य तो यह है कि पदार्थ ज्ञान हुए विना क
र्ता-विकर्ता के विषय का व्रम दूर होना बहुत कठिन (मुशकिल) है. ___आरियाः-अजी! पदार्थ ज्ञान किसे करते हैं?
जैनी:-जैन शास्त्रों में दो दी पदार्थ माने गये हैं; चेतन और दूसरा जरु. सो चेतन के मूल दो भेद है। (१) प्रकट चेतना कर्म रहित सिइ स्वरूप परमेश्वरः (२) अनंत जीव सामारिक कर्म बंध सहित.
दुसरे जम के नी मृत दो भेद हैं: (१) प्ररूपी जम (आकाश,काल आदिक);()रुकी जम.जो पदार्थ दृष्टिगोचर (देखने में आने