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GO संसार में, 'ज्ञान' झान रूप हो जाता है. 'निर्धूतकल्मपाः' झाडके अनादि कल्प (कर्मदोष)-इत्यादि ___अब समझने की बात है कि वह कर्मदोप, राग द्वेष, मोनादि काडे, तो वह कर्म कुब जम पदार्थ होगा तब ही झाडा गया, न तु क्या कामता ? सो इस प्रकार से अबंधपद को सादि-अनन्त कहते हैं; अर्थात् जिस दिन चेतन कर्मबंध से मुक्त हुआ वह उसकी
आदि है और फिर कनी कर्मबंधन में न आना, इस लिये अनन्त है. और जैन सूत्र जगवतीजी...प्रज्ञापनजी में पदार्थों के चार लेद इस प्रकार से भी कहे हैं.
गाथा. (२) अणाइआ अपडवसीया, (३) अणण
सपावसीया(३)साश्ा अपडवसीयाः (8) साश्या सपझवसीया. इसका अर्थ पूर्वाक ही समझना.