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धर्मपरायण होने से कर्म रहित हो जाते हैं, अर्थात् सर्व आरंन के त्यागी हो कर नये कर्म नहीं करते हैं, तब पूर्वोक्त अन्तःकरण (सुक्ष्म शरीर ) फट जाता है, और निर्मल चेतन कर्म से मुञ्चित (मुक्त) होकर अर्थात् बंधसें अबंध दो कर पूर्वोक्त मोद पद को प्राप्त हो जाता है यथा:
. .. श्लोक. . चेतनोऽध्यवसायेन कर्मणा च संबध्यते । .' ततो नवस्तय नवेत्तदन्नावात्परं पदम् ॥
चेतन (आत्मा) अध्यवसाय (वासना) से कर्म से बंधायवान् होता है; तिससे तिसको संसार अर्थात् जन्म-मरण प्राप्त होता है;
और जिसके संसार अर्थात् जन्म-मरण का अनाव हो जाता है वह जीवात्मा परमपद (मुक्ति) को प्राप्त हो जाता है.
यथा दृष्टान्त है कि फुल में सुगंधि और