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८३ श्री चेतन ही रहेगा, चेतन तो कभी जह नहीं होगा और जम कभी चेतन नहीं होगा; यथा दृष्टान्त: साल में लाली. और दीरे में सफेदी, इत्यादि पढ़ार्थ की असलीयत को 'तादात्मिक सम्बन्ध' कढ़ते हैं.
(२) 'समवाय सम्बंध' उसे कहते हैं की जो वस्तु तो दो दोवें और स्वतः स्वभाव से ही अनादि मिली मिलाई दोवे; यथा जीव खोर कर्म.जीव तो चेतन और कर्मों का कारण रूप अन्तःकरण अर्थात् सूक्ष्म शरीर जग, यह पदार्थ तो दो हैं, परन्तु अनादि शामिल हैं. जीव का अन्तःकरण (सूक्ष्म शरीर ) अनादि समवाय सम्बंध ही हैं, और जो जो कर्म करता है सो निमित्तों से करता है, अर्थात् सुरत इन्द्रिय यदि कों से फिर वह निमित्तिक कर्मों का फल निमित्त से जोगता है. ऐसा ही यह सिलसिला चला आता है. सो जो यह जीव अनादि- सान्त कर्म चाले हैं, उनमें से देशकाल शुद्ध मिलने पर