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आरिया:---तो फिर तुम्हारे कथनानु__सार जीव की कमी से मोक्ष न होनी चाहिये।
क्यों कि जिसकी आदि ही नहीं है उसका अन्त नो नहीं है, तो फिर तुम्हारे तप-संयम का क्या फल होगा,
जेनी-अरे! यद तो तर्क हमारी ही तर्फ से संभव है क्यों कि तुम तो मोद में नी कर्म मालते दो. जन का से फिर वापिस आकर जन्म होना मानते हो. परन्तु तुमको पदार्थ के संपूर्ण भेदों की खबर नहीं है. सुने सुनाये कहीं से कोई अंग जान लिया; 'मेरे बैंगन तेरी ग !' बस एक सुन लिया अनादि, अनन्त, जिस की आदि नहीं उसका अन्त जी नहीं परन्तु सूत्र में पदार्थ के चार भेद कहे ई-प्रथम अनादि-अनन्त; (२) अनादि सान्त; (३) सादि-सान्त, और (1) सादि-अनन्त,
आरिया:-इनका अर्व भी कृपापूर्वक बता