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ថ្មីៗ पर " तर्कः-अरे मूढ ! ऐसे करे कैसे ? ईश्वर तो कर्ता ही नहीं है. यह तो अनादी नाव है, जाति से जाति, अर्थात् जैसी योनि में जाने के कर्म जीव से बने होवें, वैसी ही योनि में उत्पन्न हो कर उसी योनि वाले रूप में होता है. हां! जीव की कोई योनि, जाति नहीं है. इस से पूर्वोक्त कर्मानुसार कनी नर्क योनि में, कल्ली पशु वा मनुष्य वा देवयोनियों में परित्रमण करता चला आता है.
- आरिया:-क्यों जी ! पहिले जीव है कि कर्म हैं ? ... जैनी: यह प्रश्न तो जनसे करो जो जीव और कर्म की आदि मानते हों. वही बतावेंगे कि प्रथम जीव है वा कर्म. जैन में तो जीव और कर्म अनादि समवाय सम्बंधी माने हैं; तो आदि ( पहिले .) किसको कहें ? क्यों कि पहिल हुश्त्तो आदि दुआ.