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हुँ, चणे से चणे, इत्यादि. और कई एक मूर्ख खोग एसे कहते हैं कि, कर्म (प्रकृति) से देह बनता है तो आंख के स्थान कान, और कान की जगह हाथ आदिक प्रकृतियें क्यों नहीं लगा देती हैं? उत्तरः-अरे लोले! प्रकृति तो जम है. यह तो वेचारी आंख की जगद कान क्या लगा देगी ? परन्तु तुम्हारा ईश्वर तो परम चेतन कर्त्तमकर्ता है, वह क्यों नहीं कान की जगह वाह लटका देता, और किसी के दो आंखें और पीने को लगा देता? जिस से मनुप्य को विशेष (बहुत ) लान पहुंचता; कि आगे को तो देख कर चलता और पीठ को जी देखता रहता कि कोई सर्प आदिक अथचा शत्रु आदिक पीगन करता हो, और सोग जी महिमा करते कि धन्य है ईश्वर की सीला किसी के दो आंखे और किसी के तीन वा चार लगा दी है. परन्तु तुम्हारा ईश्वर तो चेतन दो कर ली ऐसे नहीं करता है,