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के वश-परतंत्र हो गया. क्यों कि वह नहीं चाहता है कि मेरे मुख से उर्गन्धि आवें,
आंखों में खाली आवे, और ऐरगैर वात मुख से निकले, घुमेर आकर जमीन पर गिर पडूं; परन्तु वह शराव तो अपना फल (जौहर) दिखावेगी ही; अर्थात् दुर्गन्धि नी आवेगी, अांखे नी लाल होगी, और ऐरगैर बातें भी मुख से निकलेंगी, घुमेर आकर मोरी में भी पमेगा, और शिर नी फूटेगा, मुख में कुत्ते नी मूत्र करेंगे. अब कहो वेदानुयायी पुरुषो! यह कर्तव्य जम के हैं अथवा चेतन के ? वा ऐसे है कि जब पुरुष ने शराब पी तब तो पुरुष को स्वतंत्र जान के ईश्वर उसके लिहाज से चुप हो रदा, फिर पीनेके अनन्तर (बाद) फल देने को अर्थात् पूर्वोक्त बेहोशी करने को ईश्वर तैयार हो गया ? क्यों कि शराब तो जड थी. वस! यो नहीं. वही शराव पुरुष की स्वतंत्रता से ग्रहण की हुई मेद में मिल कर