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________________ ७३. जैनी:-जम तो जमवाले सब ही काम कर सकता है क्योंकि जमनीतो कुच्छ पदार्थ दी होता है. जब पदार्थ है तो उसमें उसकी स्वन्नाव रूप शक्ति नी होगी; अर्थात् अग्नि में जलाने की और विष (जदर ) में मारने की, जल में गलाने की, मिकनातीस चमकपत्थर में सूई खेंचने की, मदिरा (शराव) में वेदोश करने की, इत्यादिक. यथादृष्टान्तः-शराब की बोतल ताक में धरी है, अब वह शराव अपने आप किसी पुरुष को जी नशा नहीं दे सकती: क्यों कि वह जम हे-परतंत्र है. फिर उसी बोतल को उठा कर किसी पुरुप ने अपनी स्वतंत्रता से पीलिया, क्यों कि वह पुरुष चेतन दे-शराव के पीने में स्वतंत्र है: चाहे योमी पीये, चाहे वहुती पीये, चाहे नाही पीये. परन्तु जब पी चुका तव वह शराब अपना फल देने को (बेहोश करने को) स्वतंत्र हो गई और वह पीन वाला शराब
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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