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सव पुराकृत कर्म ही के पर्याय वाचक नाम हैं. इत्यादि बहुत स्थान शास्त्रों में कर्मफल कर्मों के निमित्त से ही जोगना लिखा है. ईश्वर नहीं झुगताता है, निष्प्रयोजन होने से; परन्तु पद के जोर से, पूर्व धारण के अनुकूल मति अर्थ को खेंचती है, यथा २५४ कै उपे हुए सत्यार्थ प्रकाश के पवें समुल्लास २३० पृष्ठ पंक्ति १श्वीर में लिखा है:-"ईश्वर स्वतंत्र पुरुष को कर्म का फल नहीं दे सकता, किन्तु जैसा कर्म जीव करता है वैसा ही फल ईश्वर देता है" इति. अव देखिये! पूर्वोक्त कारण, न तो ऐसा लिखना चाहिये था कि जैसा कर्म जीव करता है वैसा ही पल होता है.
आरियाः-अजी! आपने प्रमाण (हवाले) दिये सो तो यथार्थ हैं; परन्तु हम लोगों को यह शंका है कि कर्म तो जम है; यह फलदायक कैसे हो सकते हैं? अर्थात् जम क्या कर सकता है ? .