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उत्पन्न करे है तथा कर्मों के फल के संबंध को. नी नहीं उत्पन्न करे है; किन्तु अज्ञान रूप मोह ही कार्य के करने विष प्रटत्त होवे है. ___यथा 'शान्ति शतके, श्री सिल्हन कवि संकलित आदि काव्ये:
श्लोक.
नमस्यामो देवान् ननु हन्त विधेस्तेऽपिवशगाः विधिर्वद्यः सोऽपि प्रतिनियत कमैकफलदः। फलं कर्मायत्तं किस मरगणैः किञ्चविधिना नमस्तत्कर्मेच्यो विधिरपि न येन्यः प्रनवति॥र
इसका अर्थ यह है कि, ग्रंथकर्ता ग्रंथ के आदि में मंगलाचरण के लिये देव को नमस्कार करता है. फिर कहता है की, वह देवगण नी तो विधि ही के वश है तो विधि ही की वन्दना करें, फिर कहता है कि विधि जी कर्मानुसार वर्ते है. तो फिर देवों को नमस्कार करने से क्या सि६ दोगा? और