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लिखा है कि यह कृत कर्म (किये हुए कर्म) अन्तःकरण रूपी विधान में जमा रहते हैं; और वदी फल भुगताने में मति को प्रेरणा करते हैं. यथा
श्लोक. यथा यथा पूर्व कृतस्य कर्मणः फलं निधानस्थमिवोपतिष्ठते; तथा तथा तत्प्रति पादनोद्यता, प्रदीप दस्तेव मतिः प्रवर्तते ॥१६॥
यथा 'कृष्ण गीता' अध्याय एवें श्लोक . २४ चे में लिखा है--
श्लोक नकर्तृत्वं नकर्माणि लोकस्य सृजति प्रन्नुः । नकर्मफलसंयोग स्वन्नावस्तु प्रवर्त्त ते ॥१४॥
हे अर्जुन ! प्रनु देवादिकों के कर्तत्व को नहीं उत्पन्न करे है, तथा कमी को भी नहीं