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आरियाः--यों तो लोगों में अनेक प्रकार के कार विहार में, चलने, फिरने आदिक में बिना इरादे जीव हिंसा आदि हो जाती है तो क्या उसका दोष नहीं होता ?
जैली:-दोष क्यों नहीं? आचार विचार कानपदेश जो शास्त्रो में कहा है,नसका तात्पर्य यही है कि अज्ञान अवस्था में (गफलत में) रहना अवश्य ही सर्वदा दोष है.
तथा किसी ने स्वतंत्र आप ही चोरीकरी,फिर वह पकमा गया, मुकद्दमा हो कर जेहलखाने का हुक्म हुआ, तव वद चोर अपना माया ओरता है कि मेरी प्रारब्ध, तो उसे बुद्धिमान् पुरुष यों कहेंगे कि अरे! प्रारब्ध बेचारी क्या करे ? तैने हाथों से तो चोरी के कर्म किये,अब इनका फल तो चाखना ही पड़े गा. यदि कोई शाहूकार जला पुरुष है और उसको अचानक ही चोरी का कलंक लग गया, और मुकद्दमा होने पर जेहलखाने में