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हे जीवो ! नये कर्म करने में तुम स्वतंत्र हो; समऊ के चलो; खोटे कर्म पूर्वोक्त हिंसा, मिथ्या, आदि से हटो; और नले कर्म दया, दान आदि में प्रवृत्त रहो.
आरिया:-यद तो जो तुमने कहा सो सत्य है, परन्तु हमारा यह प्रश्न है कि, चोर चो. ती तो आप ही कर लेता है, परन्तु कैद में तो आप ही नहीं जा धसता; कैद में पहुंचाने वाला जी तो कोई मानना चाहिये ?
जैनी:-हां, हां; चोरने जो चोरी का कर्म किया है वास्तव में तो उसके कर्म हीसे कैद होती है; परन्तु व्यवहार में राजा, कोतचाल (थानेदार) सिपाही आदि के निमित्तों से जाता है. यदि चोर को स्वयं (खुद) ही फांसी लग जाने वा स्वतःजवल कर कैद में जा पमे तो समका जाय कि ईश्वर ने दी चोर को चोरी का फल जुगताया. क्यों कि तुम्हारी इस में वास्तव से [असल] तर्क यही होगी