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जब तक तीर हाथ में था तब तक उसका अख्तियार था कि कहींको चला दे; परन्तु जब
गेम चुका तो शख्तियार से बाहिर हुआ नहीं रख सकेगा; जा दी लगेगा.अथवा कोई पुरुष बिष खाने लगे,तो उसे अख्तियार दै कि खाये, वान खाये सोच समझ ले.परन्तु जब खा चुके . तो बेअख्तियार दै; फिर कितना ही वह पुरुष चाहे कि मुझे इसका फल (उःख वा मरण) , न हो, तथापि वद विष (जहर) जसे अवश्य ही फल देगा.इसी प्रकार से जिस वासना से कर्म करता है उस वासना कीआकर्षण शक्ति द्वारा ( बैंच सें) परमाणु इकठे हो कर , कर्म रूप एक प्रकार का सूक्ष्म मादा विष की तरह अन्तःकरण रूप मेद में संग्रद (इकठ्ठा) , हो जाता है. उसका सार रूप कर्मफल नि- है मित्तों से परलोक में नोगता है. इसका स्वरूप हम विस्तार सहित आगे लिखेगें.इसीलिये शास्त्रकारों का जीवों को उपदेश है की: