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५.१. आदि की जान्ति अनेक कर्म करनेवाले इश्वर को तुम ही मानो; मैं तो नहीं मानता. मैं तो. पूर्वोक्त निष्कलंक, निष्प्रयोजन, सचि सर्वानन्द, एकरस ऐसे ईश्वर को मा गुरूः - हम तो ईश्वर को कत्त नते हैं, परन्तु तेरी बुद्धि में यथार्थ खाने के लिये उलट पुलट करके हम तो ईश्वर को कर्त्ता मानने प्रथम ही सिद्ध कर चुके हैं. शिष्यः -- हां, हां, गुरूजी !
माला, ' ' अमर कोष' आदि देखे और पढे जी हैं. वहां व विष्णु च्यादि देवों के नाम चले हैं; परन्तु ऐसा ईश्वर की महिमा का शब्दार्थ नहीं जीवों को पूर्वोक्त कष्ट देनेवा गुरुः-- नहीं रहे शिष्य !
स्थाओं का कर्त्ता तो कर्म ही