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। श्वर की मर्जी के बाहर पूर्वोक्त गोवधादिक हिंसा और झुठ चोरी आदिक कन्नी न होते,
गुरु:-यह तो सत्य है, परन्तु वह कदते हैं कि, ईश्वर को कर्ता न माने तो ईश्वर बेकार माना जावे. - शिष्यः-तो क्या हानि (हर्ज) है ? कार तो गर्जमन्द-पराधीन-जिन का निर्वाह न दो वह करते हैं. क्या करें ? कार करेंगे तो खा लेंगे,न करेंगे तो किस तरह से निर्वाह होगा? परन्तु ईश्वर तो अनन्त ज्ञान आदि ऐश्वर्य (दौलत) का धारक है और निष्प्रयोजन (वेपरवाद) दै. वह कार कादेको करे? वस! ईश्वर इन पूर्वोक्त जीवों के कर्मफल नुगताने में अर्थात् फुःखी करने में कारण रूप होता है; तो पहिले उखदायी कर्म करते हुए ह'टाने में कारण रूप क्यों नहीं होता? ऐसे पूवोक्त अशक्त, और अल्पज्ञ, अन्यायी, कुम्हार, माली, तरखान, मजदूर, बाजीगर