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शिष्य :- बस ! इतना ही कहना था. परन्तु
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प्रकृति काजी गुण, कर्म, स्वभाव पूर्वोक्त होता दी है, फिर शंका का क्या काम ? यदि ईश्वर का दिया स्वभाव दोवे तो अनि को ईश्वर जल का स्वभाव दे देवे और जहर को अमृत का स्वभाव दे देवे; क्यों कि ईश्वर सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान् है; जो चाहे सो करे. परन्तु ईश्वर कर्त्ता नहीं है; क्यों कि पञ्चम वार सं. . १९५४ के बपे हुए “सत्यार्थ प्रकाश" अष्टम समुल्लास २७ पृष्ठ २१, २२, २३, पंक्ति में लिखा है कि, जो स्वाभाविक नियम अर्थात् जैसे अग्नि, उष्ण, जल, शीत, और पृथिवी च्यादिक जमों को विपरीत गुण वाले इश्वर जी नहीं कर सकता. व तर्क दोता दे की, # वद नियम किस के बांधे हुए थे, जिनको ईश्वर जी विपरीत अर्थात् बदल नहीं सकता ? बस ! सिव हुआ कि, पदार्थ भी अनादि हैं और उनके स्वभाव अर्थात् नियम जी ना
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