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ला कोइ और दी अर्थात् ईश्वर होगा, यथा काष्ठ और लोहा पृथक् अर्थात् अलग पडा है वह आप ही मिलके तख्त नहीं बन सकता, उनके मिलाने वाला तरखान होगा, इस कारण से.
शिष्यः - वस, इसी नम से ईश्वर को कर्ता मान वैठे हैं ? यदि इसी प्रकार से और जी भ्रम में पम जायें कि जन पदार्थ आप ही नहीं मिलते हैं, इन के मिलाने वाला कोई और ही होना चाहिये, तो फिर यह जी मानना पड़ेगा कि, यह जो चान्ति के बादल दोते हैं इनके बनाने वाले भी राज मजदूर दोंगे, और सायंकाल के समय जो रङ्ग वरङ्ग के बाद दो जाते हैं उनके रहने वाला कोई रंजक अर्थात् बलारी जी होगा. और जो आकाश में कनीर इन्द्र धनुष्य पडता है नसके बनाने वाला भी कोई तरखान होगा, और कई काच आदि वस्तुओं का प्रतिवि