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लात्कार(जबर्दस्ती से) दुःखी और मृत्यु आदि व्यवस्था को प्राप्त करता है. क्यों कि कइएक ऐसे २ जवानी में जीवन को लोचते ही मर जाते हैं, जिनके मरने के पश्चात् (पीछे से) सात ३ गृहों (घरों) को यंत्र (ताले ) लग जाते हैं, और स्त्रिये रुदन करती ही रह जाती हैं. क्या यह कष्ट इश्वर देता है ? यदि ऐसे ईश्वर का कोई स्थान बताओ तो उससे पू. कि, हे ईश्वर ! जीवों को इतना कष्ट क्यों देते हो ? क्या आप को दया नहीं आती ?
गुरू:-कर्म तो स्वयं (खुद) जीव ही करता है; ईश्वर तो उनके कर्मानुसार फलही देता है. - शिष्यः क्या, जिस प्रकार से मजदूरों को मजदूरी का फल (तनखाद ) वावू देता है, ईश्वर जी इसी प्रकार से जीवों के ताईकमों का फल देता है वा और प्रकार से ?
गुरू:-मजदूरों की मान्ति जीवों को