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कहें या नहीं, कि अरे मूर्ख ! तेरे सामने ही तो इसने विष (जहर ) खाया, और यद्यपि तेरे में रोकने की पूर्ण शक्तिन्नी थी, तथापि तूने उस समय तो रोका नहीं, और अब इसे तूं दएक देता है! अरे अन्यायी! अब तूं नलाबनता है!
इसी प्रकार से तुमनी ईश्वर को क्या तो अल्पज्ञ और शक्तिहीन मानोगे नहीं तो अन्यायी. यह तृतीय (तीसरा) दोष अवश्य ही सिद्ध हुआ. अब चतुर्थ (चौथा) सुनो.
कहोजी! तुम्हारे वेदों में ईश्वरोक्त (ईश्वर की कही हुई) यद ऋचा है कि “ अहिंसा पंरमो धर्मः " ?
आरियाः-हां! हां! जी सत्य है.
जैनी-तो यह लाखों गौ आदिक प. शुओं का प्रतिदिन कसाई आदिक वध करते हैं यह क्या ? यदि ईश्वर कीश्चा से होते हैं, तो ईश्वर की दयालुता कहां रही ? इस नान्ति से यह चतुर्थ (चौथा) दोष निर्दयता का