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हुए इसे क्यों कर नहीं रोका? तब पिता बोला कि मैं हटाने में बाकी नी रखता ? मैने तो इस के हाथ में पुमिया देखते ही हाथ पकड लिया और वहुत निरोध किया अर्थात् हटाया, परन्तु यह तो बलात्कार (जबरदस्ती) से दाथ छुमा कर खा दी गया. मैं फिर बहुत लाचार हुआ. क्यों कि मेरे में इतनी शक्ति कहां थी, जो कि मैं इस के साथ मुष्टियु अर्थात् मुकम्मुका दो कर इसे जहर खाने से रोकता: अब आप समझ लीजिये कि पिता की बे खबरी में और शक्ति से बाह्य (बाहर ) हो कर पुत्र के जहर खाने से तो पिता के जिम्मे अन्याय कदापि सिद्ध नहीं हो सकता; परन्तु, पिता को खबर ली हो और छुमाने की शक्ति भी हो, फिर पुत्र को विष खाने देवे और खाने के अनन्तर (पी) पुत्र को दसक अर्थात् घर्षण (झिडका) आदि देये, तो वह सजन पुरुष पिता को अन्यायकर्ता (वेश्नसाफ)