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जैनी-अरे भाई! यही तो ईश्वर के कर्ता मानने में, वा राजा की जान्ति दृष्टान्त देने में, दो दोष सिम होने का लक्षण दी है. क्यों कि राजा को अल्प शक्तिमान् और अल्पज्ञ होनेसे ही न्याय पुस्तक-कानून की किताबें बनाने की और पहरेदारों के रखने की आवश्यकता अर्थात् जरूरत होती है. ऐसे ही ईश्वर में कर्तामानने से दो दोष सिह दुए हैं. क्यों कि जिसमें सर्वशक्ति हो और जो सर्वज्ञ हो, उसकी इहा के प्रतिकूल अर्थात् वर्खिलाफ काम कनी नहीं हो सकता. यदि दो नी तो पूर्वोक्त राजा कीसी तरह तृतीय [ तीसरा ] दोष अन्यायकारित्व का अर्थात् बेश्नसाफ होने का माना जावेगा. जसे कि किसी पुरुष के कई एक पुत्र हैं.
और पिता की इन्चा सब पुत्रों के सदाचारी (नेक) और बुद्धिमान् [अक्लमन्द] और धनाढ्य (दौलतमन्द) दोने, की है. यदि पिता,