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उनके मरते ही सब अज्ञानी और पापीयों की स्वयं ही मुक्ति अर्थात् नाश हो जायगा.
और तुम्हारे कथनानुसार ऐसे जी सिक होता है, कि जब वेदान्ती उत्पन्न होता है। तब संसार बस जाता है, और वेदान्ती जब . मर जाता है तब संसार का नाश हो जाता है. परन्तु यह सन्देह ही रहा कि वेदान्ती का . पिता, वेदान्ती से पहिले कैसे हुआ? और वेदान्ती की मुक्ति अर्थात् मरणे के अनन्तर वेदान्ती के पुत्र कन्या कैसे रह जाते हैं ? . ना तो हम लोग आस्तिक आंखों वालों को
यों दी मानना पडेगा, कि वेदान्ती को न कनी 'मोद प्राप्ति हुई और नाही होगी, क्यों कि सब संसार पहिले नी था, और अबनी है, और वेदान्ती के मरण के अनन्तरजी रहेगा.
. . . . (१५). . . . . . . . ... नास्तिकः-अला, जैनीजी! तुमही बताओ; किजीव चेतन है वा.जम ?