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________________ .. . ए और सुननेवाला जी रहता ही होगा, यदि नहीं तो तूं सुनाता क्यों है, और सुनाता किस को है, और सुनने से क्या लाल होता है ? .... ' (४) . . . नास्तिकः-घटाकाश, मगकाश, .म हाकाश, यह तीन प्रकार से हमारे मतमें आकाश माने हैं, सो घटवत् शरीरका नाश होने पर महाकाशवत् मोद हो जाता है. . . जनी:-तो यह बताइये कि वद घटवत् शरीर जम है वा चेतन ? .. नास्तिकः-जड है. ... जैनी:-घटवत् शरीर जम है तो वह बनाये किसने ? और किस लिये बनाये ? क्यों कि तुम चौदहवें पृष्ठ में लिख आये दो कि आत्मा के सिवाय सब अनित्य है. तो वह घमे नी अनित्य ही होंगे, तां ते पुनरपि बनाये जाते होंगे...... . . (नास्तिक चुप हो रहा.) : . . .
SR No.010467
Book TitleSamyaktva Suryodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParvati Sati
PublisherKruparam Kotumal
Publication Year1905
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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