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, २१ ., जैनीः-जला. महाआकाश ज़म है बा चेतन है ?, ..
नास्तिकः-जम है. . जैनी:- तो फिर महा आकाशवत् मोद क्या हुआ ? यह तो सत्यानाश हुआ! इस से तो वे मुक्त ही अच्छे थे, जो कन्नी ब्रह्मपुरी के कन्नी चक्रवर्त्त आदिक के सुख तो नोगते. मुक्त हो कर तो तुमारे कथन प्रमाण से सुन्न हो गया, क्यों कि तुम मुक्ति को बुके हुए दीपक की नान्ति मानते हो...
. (५.)........ ' नास्तिकः--एक तो शुभ ब्रह्म, एक . मायोपहित शुद्ध चेतन, जगत् कारण ईश्वर, एक अवद्योपहित जीव, दूसरे अध्याय के शए वें पृष्ठ में यह सब अनादि हैं, इनको यों नहीं कहा जाता है, कि यह कबसे हैं ? . .
जैनीः-तो फिर तुमारा अद्वैत तो नाग . • गया! यह तो तीन हुए. .
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