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- जैनीः-देखो! इन नास्तिकों की क्या अच्छी मोद ढई ? अरे मतिमन्द! मोद होने चाला डूब गया, किनगरादिक न रहा? अपितु नगरादिक तो सब कुच्छ वैसे ही रहा, परन्तु चह ही स्वयं डूब गया. फिर ब अध्याय के (ए४ पृष्ठ में लिखा है.
नास्तिकः-संसार तो स्वप्नवत् झुग है, परन्तु सोते हुए सत्य, और जागते हुए असत्यः परमार्थ में दोनों ही असत्य हैं.
जैनीः-सोता कौन है ? और जागता कौन है ? और स्वप्न क्या है? और स्वप्न आता किसको है ? ।।.. . ... (नास्तिक चुप हो रहा.). . जैनी:-स्वप्न जी तो कुछ देखे वा सुने
आदिक का ही आता है, और तुम कहते हो, कि जागते असत्य, तो तुम्हारे पांच तत्व नी तो रहते ही होंगे, और तूं कहनेवाला