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प्रथम अध्याय के अन्त के श्य पृष्ठ में लिखा है,कि ना मोद है और ना जीव है और नाही, ईश्वर और नाही और कुब है:फिर यह नास्तिक ज्ञान और मोक्ष पुकारते हैं, यथा बालूकी जीत पर चुवारे चिनें और फिर तीसरे अध्याय के साठवें पृष्ठ ७ वी नूमीका के कथन में लिखते हैं, कि कोई पुरुष नदी के तट पर खमा हो कर नगर की और दृष्टि करे, तो उसे सारा नगर दीखता है, फिर वह सौ दोसौ कदम जलमें आगे को गया जहां गती. तक जल आया, फिर वह वहां खमा हो कर देखे, तो ऊंचे भकाल तो दीखें परन्तु नीचे के मकान आदिक नगर न दीखें. फिर गले तक जल में गया तो कोई शिखर नजर आया,
और कुच्छ नदीखा. जब गरे जलमें बही गया तो फिर कुच्छ नी न देखा. ऐसे ही : मोद हो कर संस्कार नहीं दीखे, अर्थात् सं
सार मिथ्या है.