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goo , 'अर्थः-ब्राह्मणों की कामना मांसभक्षण .' करने की हो तो यज्ञ में प्रोन विधि से अर्थात् वेद मंत्रानुसार शु६ कर के लक्षण कर लें: श्राछ में मधुपर्क से, मांस मधुपर्क इति, और प्राणरदा के हेतु विधि के नियम से. ॥२॥
प्राण का यह सम्पूर्ण अन्न प्रजापति ने बनाया है. स्थावर और जङ्गम सम्पूर्ण प्राण का नोजन है. ॥श्ना
श्लोक...
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यझार्थ पशवः सृष्टाः स्वयमेव स्वयं जुवा ॥ यज्ञस्य नूत्यै सर्वस्य तस्माद् यझे वधोऽवधः
॥शए॥ अर्थः-ब्रह्माजी ने स्वयमेव ही यज्ञ की सिद्धि __ की रधि के लिये पशु बनाये हैं. इस लिये
यज्ञ में पशुवध अर्थात् यज्ञ में पशु मारने का 'दोष नहीं है. इति ॥४॥
तर्कः-जब कि धर्मशास्त्र मनुस्मृति दी वेदों के आधार से यों पुकारती है, तो पाप