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ए टिया, न लोट्टे, न घडे, न मट्टे में ही आ सकता है. हां! स्वाद मात्र से तो सारांश समुद्र का आ सकत है; यथा खारा, वा, मीग.ऐसे ही सर्वज्ञों के कहे हुए शास्त्र अर्थ समुड़ के जल वत् अनन्त हैं. दलील रूपी बूटिया में नहीं आ सकते. और दलील जो तो पूर्वोक्त विधानों के वचन सुन कर ही वमी होती है.
बस पूर्व कहे प्रश्नोत्तरों से सिद्ध हो चुका कि ईश्वर का नहीं है. और नाही ईश्वरोक्त वेद हैं; क्यों कि वेदों में पशुवध करना, और मांस खाना लिखा है, यथा मनुस्मृति के पांचवें अध्याय के श, ज, शए वे श्लोक में लिखा है:
श्लोक, प्रोदितं जदयेन्मांसं ब्राह्मणानां च काम्यया॥ यया विधि नियुक्तस्तुप्राणानामेव चात्पर॥ प्राणस्यन्नमिदं सर्व प्रजापति रकल्पयत् ।। स्थावरं जङ्गमं चैव सर्व प्राणस्यनोजनम्॥३ता
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