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बोला कि लिख,एकर दो दो दूनीचार,तो शिष्य बोखा कि मुझे तो किरोमको किरोड गुणा करना अर्थात् जरव देना, तकसीम देना, समझाओ. चला, जब तक दो दूनी चार भी नहीं जानता तब तक किरोडों के हिसाब को बुदि कैसे स्वीकार करेगी ? जब पढतेश् पाठक की बुद्धि प्रबल परिमत के तुल्य हो जावेगी तब ही किरोगों के हिसाब को समझेगा...
प्रारियाः-यूं तो तुमारे सूत्रों को पढते पढते ही बूढे हो जावेंगे तो समझेंगे कब ?
जैनी:-अरे नाई! जो पेट नराई की विद्या फारसी अगरेजी आदिक बने परिश्रम से बहुत काल में आती है, कनीर अनुत्तीर्ण ( फेल ) हो जाता है, और कनी उत्तीर्ण (पास) होता है, फिर कोई बी. ए, एम. ए. पास करते हैं. तो तुम स्कूल में बैग्ते दी मास्टर से यों ही क्यों नहीं कह देते,